समाज में ऐसे अनेक धर्म गुरु देखने को मिल जायेंगे, जो ‘‘मैं’’ को सारी समस्याओं की असली जड़ बताकर ‘‘मैं’’ से मुक्त होने का सन्देश देते रहते हैं और ऐसे गुरुओं से आश्चर्यजनक रूप से लाखों-करोड़ों लोग अपने उद्धार की अपेक्षा भी करते रहते हैं। ऐसे गुरुओं का कहना होता है कि जब तक ‘‘मैं’’ से मुक्ति नहीं मिलगी, तब तक मनुष्य को कुछ भी नहीं मिल सकता है। ऐसे लोगों का कहना होता है कि ‘‘मैं’’ ही सभी प्रकार की अहंकारपूर्ण बातों को जन्म देता है। इसलिये मनुष्य को अपने ‘‘मैं’’ को मारना होगा। मुझे इस प्रकार की बातें सुनकर और पढकर उन लोगों पर दया आती है, जो अपने ‘‘मैं’’ को मारने या कुचलने में उम्रभर लगे रहते हैं, लेकिन वे अपने ‘‘मैं’’ को नहीं मार पाते हैं।
सच्चाई यह है कि ‘‘मैं’’ को कभी मारा ही नहीं जा सकता, फिर ‘‘मैं’’ को कुचलने से ‘‘मैं’’ से कैसे मुक्त हुआ जा सकता है। ऐसे गुरु अपने भक्तों को सुख और शान्ति रूपी सकारात्मकता प्रदान करने के बजाय ‘‘मैं’’ से मुक्ति पाने को यह कहकर प्रेरित करते हैं कि यदि संसार के बन्धनों से मुक्त होना है तो ‘‘मैं’’ से मुक्त होना ही होगा। जो व्यक्ति ‘‘मैं’’ से ही मुक्त नहीं हो पाता है, वह संसार के कथित बन्धनों से मुक्त होने की कल्पना भी कैसे कर सकता है। इस प्रकार गुरुओं का खेल (धंधा) चलता रहता है और इस प्रकार भक्तों को आध्यात्मिक रस के बजाय जहर को सेवन कराया जाता रहता है।
‘‘मैं’’ को जाने बिना, ‘‘मैं’’ से मुक्ति की बात करना या ‘‘मैं’’ को प्रमाद या अहंकार का या नर्क का मार्ग बतलाकर अपने ही अनुयाईयों को डरा धमकाकर उनसे आध्यात्म शुल्क वसूल करना, न जाने कब से धन्धा बना हुआ है। जबकि जीवन अपने आप में ‘‘मैं’’ में समाहित है! ‘‘मैं’’ नहीं तो जीवन नहीं! जो लोग गुरु बनकर लोगों से उनका जीवन छीन रहे हैं, अपने अन्त:करण में झांककर देंखें तो पायेंगे कि वे लोगों के जीवन को दर्द और दु:खों की ओर धकेल रहे हैं। जो ‘‘मैं’’ को मारने या समाप्त करने की बात कर रहे हैं, वे न मात्र मानव हन्ता (मानव के हत्यारे) हैं, बल्कि ईश्वर हन्ता भी हैं। ऐसे लोग प्रकृति के सिद्धान्तों को न तो समझते हैं और न समझना चाहते हैं!
अब हमें ‘‘मैं’’ को समझना होगा, जो न तो बहुत कठिन है और न हीं बहुत सरल है। इसका कारण है, हमारा जीवन जीने का असहज तरीका! इसे समझने के लिये नवागतों के लिये कुछ उदाहरण प्रस्तुत करना जरूरी है। जैसे-
यहॉं हमारे आपके बीच के लोगों की कुछ साधारण सी बातों को पेश किया जा रहा है, जो हम सभी हर दिन बोलते और सुनते रहते हैं :-
‘मेरा हाथ दु:ख रहा है!’ अर्थात् हाथ ‘‘मैं’’ नहीं है!
‘मेरा पेट दु:ख रहा है!’ अर्थात् पेट ‘‘मैं’’ नहीं है!
‘मेरा सिर दु:ख रहा है!’ अर्थात् सिर ‘‘मैं’’ नहीं है!
‘मेरा पैर दु:ख रहा है!’ अर्थात् पैर ‘‘मैं’’ नहीं है!
‘मेरा दिमांग फटा जा रहा है!’ अर्थात् दिमांग ‘‘मैं’’ नहीं है!
‘मेरा मस्तिष्क खराब हो गया!’ अर्थात् मस्तिष्क ‘‘मैं’’ नहीं है!
‘मेरे हृदय में दर्द हो रहा है!’ अर्थात् हृदय ‘‘मैं’’ नहीं है!
‘मेरी किडनी में दर्द हो रहा है!’ अर्थात् किडनी ‘‘मैं’’ नहीं है!
‘मेरी आँतें दु:ख रही हैं!’ अर्थात् आँतें ‘‘मैं’’ नहीं है!
‘मेरी आँख दु:ख रही है!’ अर्थात् आँख ‘‘मैं’’ नहीं है!
‘मेरा मुख दु:ख रहा है!’ अर्थात् मुख ‘‘मैं’’ नहीं है!
‘मेरी नाक दु:ख रही है!’ अर्थात् नाक ‘‘मैं’’ नहीं है!
इस प्रकार शरीर के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग में दु:ख या तकलीफ होने पर ‘‘मैं’’ पेरशानी व्यक्त कर रहा है। ‘‘मैं’’ बता रहा है कि समस्या क्या है और हमारे कथित गुरु इस ‘‘मैं’’ को ही मार डालना, कुचल डालना चाहते हैं!
जबकि सच्चाई यह है कि ‘‘मैं’’ ही इन सारी समस्याओं का उपचारक और नियन्ता है। हम (हमारा शरीर) रात्री को सो जाते हैं, लेकिन हमारी सांस विधिवत चलती रहती है। हमारे फैंफड़े काम करते रहते हैं। हमारी आँतें भोजन को पचाने का काम कर रही होती हैं। हृदय नियमित रूप से धड़कता रहता है। शरीर का हर अंग बिना रुके काम करता रहता है। कभी सोचा है कि इसे कौन संचालित करता रहता है। रात्री में सोते में अचानक हमारे ऊपर कोई वस्तु या चूहा गिर पड़े तो बिना किसी प्रयास के हमारा पूरा शरीर अपने बचाव के लिये स्वत: ही काम करना शुरू कर देता है।
यही नहीं, हमारी अंगुली कट जाती है, हम उसे बांध देते हैं और कुछ दिनों में घाव भर जाता है। टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। सिर के बाल अविरल गति से बढते रहते हैं। नाखून बढते रहते हैं। एक उम्र तक छोटे बच्चे चलते-फिरते, सोते-जागते बढते रहते हैं। फिर किशोर, जवान और बूढे होते जाते हैं। जिसके लिये हम न तो कोई प्रयास करते हैं और न कुछ कर सकते हैं। सब कुछ अपने आप चलता रहता है। कभी सोचा है कि ऐसा किस प्रकार से और कैसे होता रहता है? इस सबके लिये हमारा ‘‘मैं’’ जिम्मेदार और उत्तरदायी होता है। जिसे हमारे कथित गुरु समाप्त करने पर उतारू हैं।
सबसे बड़ी और समझने वाली बात यही है कि आखिर यह ‘‘मैं’’ क्या है? ‘‘मैं’’ कौन है, जो सब कुछ बता रहा है और सब कुछ जानता है, लेकिन फिर भी ईमानदारी से हर बात को प्रकट और संचालित कर रहा है। आप में से किसी ने कभी कहा है कि ‘‘मैं’’ दु:ख रहा हूँ। हॉं आपने यह जरूर सुना या अनुभव किया होगा कि ‘‘मैं’’ परेशान हूँ! ‘‘मैं’’ मरा जा रहा हूँ।
जब हर जगह से घुटन और कुचलन होती है, तो पीड़ा अन्त में ‘‘मैं’’ तक पहुँच जाती है तो अन्त में ‘‘मैं’’ कहता है, ‘‘मैं’’ परेशान हूँ। जब ‘‘मैं’’ परेशान होता है तो या तो समस्या का समाधान हो जाता है या फिर इंसान का अन्त हो जाता है, क्योंकि ‘‘मैं’’ प्रथम और अन्तिम शक्ति है। ‘‘मैं’’ जीवन है। ‘‘मैं’’ प्रकृति है। ‘‘मैं’’ स्वभाव है। ‘‘मैं’’ सर्वांग है। ‘‘मैं’’ ईश्वर है। जब ‘‘मैं’’ सब कुछ है तो इसे मारकर या कुचलकर कोई जिन्दा कैसे रह सकता है? लेकिन हमारे कथित गुरु इस ‘‘मैं’’ को मारने और सताने के लिये हाथ धोकर पीछे पड़े हुए हैं।
इसलिये आगे से जब कभी कोई मैं के खिलाफ कुछ भी बोले तो आँख बन्द करके उसकी बात का अनुसरण नहीं करें, बल्कि अपने ‘‘मैं’’ की रक्षा करें, क्योंकि ‘‘मैं’’ के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती! इसलिये हमें सबसे पहले ‘‘मैं’’ को समझने का प्रयास करना है और तब मैं का अनुसरण करना है। अनुसरण कैसे करना है। इस बारे में फिर कभी बात करेंगे। फिलहाल के लिये इतना काफी है। प्रत्येक जीव में विद्यमान परमात्मा आप सभी का भला करे।
सच के आगे बेबस, सच्चाई यह है कि ‘‘मैं’’ को कभी मारा ही नहीं जा सकता,
ReplyDelete‘मेरा हाथ दु:ख रहा है|’ अर्थात् हाथ ‘‘मैं’’ नहीं है|
‘मेरा पेट दु:ख रहा है|’ अर्थात् पेट ‘‘मैं’’ नहीं है|
‘मेरा सिर दु:ख रहा है|’ अर्थात् सिर ‘‘मैं’’ नहीं है|
‘मेरा पैर दु:ख रहा है|’ अर्थात् पैर ‘‘मैं’’ नहीं है|
‘मेरा दिमांग फटा जा रहा है|’ अर्थात् दिमांग ‘‘मैं’’ नहीं है|
‘मेरा मस्तिष्क खराब हो गया|’ अर्थात् मस्तिष्क ‘‘मैं’’ नहीं है|
‘मेरे हृदय में दर्द हो रहा है|’ अर्थात् हृदय ‘‘मैं’’ नहीं है|
‘मेरी किडनी में दु:ख रहा है|’ अर्थात् किडनी ‘‘मैं’’ नहीं है|
‘मेरी आँतें दु:ख रही हैं|’ अर्थात् आँतें ‘‘मैं’’ नहीं है|
‘मेरी आँख दु:ख रही है|’ अर्थात् आँख ‘‘मैं’’ नहीं है|
‘मेरा मुख दु:ख रहा है|’ अर्थात् मुख ‘‘मैं’’ नहीं है|
‘मेरी नाक दु:ख रही है|’ अर्थात् नाक ‘‘मैं’’ नहीं है|
एक दम कटु सत्य
bahut khoobsoorat aur saarthak prastuti
ReplyDelete.
रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता पर्वों की शुभकामनाएं स्वीकार करें .
Lots of good reading here, thank you! I had been browsing on yahoo when I identified your post, I’m going to add your feed to Google Reader, I look forward to additional from you.
ReplyDeleteFrom everything is canvas
आगे कुछ और लिखिए
ReplyDelete