ज्ञान तथा मार्गदर्शन की सच्ची अपेक्षा करने वालों के लिये ढोंगियों की भीड़ में सच्चे गुरुओं को ढूँढना और उनका आशीष पाना असम्भव नहीं, लेकिन मुश्किल जरूर है!
"बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे? या बोलोगे तभी तो कोई सुनेगा!" इन दोनों छोटे से वाक्यों में बोलने की बात तो कही गयी है| बोलने के लिये लोगों को प्रेरित करने का प्रयास किया गया है, लेकिन बोलना या अपनी बात को कहना भी कोई सामान्य या छोटी बात नहीं है| बोलने से पूर्व यह जानना बेहद जरूरी है कि जब हम कुछ भी बोलते हैं तो उसका हमारे लिये या दूसरों के लिये क्या असर या मतलब होता है? बोलना क्या होता है? ये कुछ ऐसी गहन बातें हैं, जिन्हें बुद्धि (दिमांग) से समझना आसाना या सामान्य नहीं है, लेकिन इसे समझना बेहद
जरूरी है| आध्यात्म के स्तर पर बोलने के अर्थ को समझने के लिये हृदय से समझने की सामर्थ्य पैदा करने की जरूरत होती है|
जरूरी है| आध्यात्म के स्तर पर बोलने के अर्थ को समझने के लिये हृदय से समझने की सामर्थ्य पैदा करने की जरूरत होती है|
आम तौर पर एक आम या सामान्य व्यक्ति के लिये बोलना, या कुछ कहना सिर्फ बोलना ही होता है, जबकि बोलना अनेक तरह का होता है| जिसे हम मौटे तौर पर पॉंच भागों में विभाजित कर सकते हैं|
आमने-सामने और सीधे-सीधे बोलना : पहला बोलना वो होता है, जिसमें हम बोलते हैं और जिसके लिये बोला या कहा जाता है, वह हमारे बोले गये को सुनता है| इसे ही आमने-सामने या सीधे-सीधे बोलना कहा जा सकता है| यह बोलना समान्य या आम व्यक्ति का बोलना है| जिसका अलग-अलग अवस्था में वक्ता तथा श्रोता के लिये अलग-अलग महत्व तथा अर्थ होता है|
अपने आपसे या बड़बड़ाते हुए बोलना : दूसरा बोलना वो होता है, जिसमें बोलने वाला अकेला ही या किसी के भी सामने बड़बड़ाता रहता है| उसे इस बात की तनिक भी परवाह नहीं रहती कि कोई इसकी बात को सुन भी रहा है या नहीं? इस प्रकार के लोगों को न तो कोई समझना चाहता है और न हीं इस श्रेणी के लोग अपनी बात को किसी को समझा पाते हैं| अनेक बार तो ऐसे लोगों को कई व्यक्ति पागल तक करार दे देते हैं| यह अलग बात है कि अपने आप से बात करने वाले या बड़बड़ाने वाले लोगों को समझना हर किसी के बूते की बात नहीं होती है| इनमें से अनेक तो दार्शनिक और अनेक बेहद तनावग्रस्त होते हैं| जबकि अनेक अपराधबोध से ग्रस्त देखे जा सकते हैं|
बिना विचारे बोलना या प्रतिक्रिया के लिये बोलना : तीसरा बोलना वो होता है, जिसमें बोलने वाला बिना सोचे समझे हर किसी बात पर तत्काल प्रतिक्रिया करने के लिये कुछ न कुछ बोलता ही रहता है| इस प्रकार के लोग कई बार हल्की-फुल्की मजाक और हंसी-ठिठौली पर भी प्रतिक्रिया करके विवाद में फंस जाते हैं और अपने तथा अपने परिवार के लिये गम्भीर मुसीबत तक खड़ी कर लेते हैं| इस प्रकार के लोगों का गहन अध्ययन करने पर पता चलता है कि ऐसे लोगों में बड़ी संख्या उन लोगों की होती है, जिन्हें बचपन में या परिवार में या कार्यस्थल पर दबाया गया या दबाया जाता है| उन्हें अपने मौलिक चिन्तन को प्रकट करने या अपने विचारों के अनुसार कार्य करने का अवसर ही नहीं मिलता या नहीं दिया जाता है| ऐसे लोगों के अवचेतन में विचार हिलोरें मारते रहते हैं| उन्हें जब भी और जहॉं भी बोलने का अवसर मिलता है, वे बिना कुछ विचारे ही बोल पड़ते हैं| ऐसे लोगों को मानसिकत रूप से परेशान या तनाव का शिकार भी माना जा सकता है|
समझाने या पढाने के लिये बोलना : चौथा बोलना वो होता है, जिसमें बोलने वाला या वक्ता अपने से कम जानने वालों, अपने विद्यार्थियों या अपने अनुयाईयों या मुसीबत में फंसे लोगों को मार्गदर्शन देने या समझाने के लिये या उन्हें मुसीबत से बाहर निकालने या किसी प्रकार का व्यसन या आदत छुड़ाने के लिये समझाइश या परामर्श देने के लिये बोलता है| इस प्रकार का बोलना तभी और उन्हीं लोगों के लिये सार्थक है, जबकि बोलने वाले में श्रोताओं को समझने तथा समझाने के लायक विषय, परिस्थितियों और जीवन के बारे में जरूरी ज्ञान, समझ, अनुभव और वकतृत्व कला का पर्याप्त व परिपक्व ज्ञान हो| अन्यथा किसी गलत या अनुपयुक्त व्यक्ति द्वारा मुसीबत में फंसे व्यक्ति को समझाने या मार्गदर्शन देने से या किसी विषय को पढाने से कुफल भी प्राप्त हो सकते हैं| हालांकि इस प्रकार के लोगों की आज समाज में अत्यन्त जरूरत है, लेकिन दु:खद सत्य यह है कि इस प्रकार के लोगों का समाज में भारी अभाव है| इस कारण से गलत या कम ज्ञान रखने वाले लोग ही इस कार्य में लगे हुए हैं|
सच्चाई तो यह है कि इस श्रेणी में पारंगत, दक्ष और योग्य महापुरुषों को ही भौतिक जगत के गुरू का दर्जा दिया जाना चाहिये और दिया भी जाता है, लेकिन ऐसे लोगों को तालाशना, उन्हें पहचानना और उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करना बहुत कम लोगों को नसीब होता है| अधिकतर लोग तो अयोग्य तथा वाचाल लोगों के जाल में ही फंसे रहते हैं|
भावभंगिमा या इशारों के जरिये में बोलना : पांचवें प्रकार का बोलना वो होता है, जिसमें बोलने वाला सीधे-सीधे अपने मुख से न कुछ कहता है और न हीं कुछ बोलता है| बल्कि अपने चेहरे के हावभाव, मनोभाव, शारीरिक भाषा, व्यवहार आदि से सुपात्र लोगों या अपने अनुयाईयों को सबकुछ समझा देता है| यह बोलना और बोले हुए को समझना या समझाना उन्हीं लोगों के लिये सम्भव हो पाता है, जिन्हें ध्यान और आध्यात्म का वास्तविक ज्ञान होता है| इस श्रेणी के सच्चे लोगों को हम भौतिक और आध्यात्मिक जगत दोनों क्षेत्रों में गुरू का दर्जा देते हैं| इस श्रेणी के लोगों का भी समाज में भारी अभाव है| इस श्रेणी के महान और योग्य लोगों की हमारे समाज के मार्गदर्शन के साथ-साथ मानव जीवन के उत्थान के लिये भी जरूरत होती है| ढोंगी और दुराचारी लोगों की भीड़ में, इस श्रेणी के सच्चे गुरुओं तक पहुँचना आम व्यक्ति के लिये बहुत ही मुश्किल और दुरूह कार्य है| फिर भी असम्भव नहीं है|
हृदय की भाषा : छठे प्रकार का बोलना वो होता है, जिसमें बोलने वाला अपने मुख, चेहरे के हावभाव, शारीरिक भाषा, व्यवहार आदि से न कुछ बोलता है और न हीं किसी को कुछ समझाता है| बल्कि अपने अन्तर्मन और हृदय के भावों या आंतरिक संदेशों के जरिये, अपने प्रिय अनुयाईयों या जिन्हें जो सन्देश देना चाहता है, उन्हें वो वही सन्देश पहुँचा देता है| यह केवल उन्हीं महान और सच्चे महापुरुषों के लिये सम्भव हो पाता है, जिन्हें ध्यान और आध्यात्म का गहनतम ज्ञान होता है| ऐसे महापुरुष ही सच्चे आध्यात्म गुरु के रूप में लोगों के सच्चे सम्मान और प्यार के हकदार और सम्माननीय (पूज्यनीय नहीं) होते हैं| ऐसे गुरु अपने अनुयाईयों में-धर्म, जाति, लिंग या आर्थिक स्थिति के आधार पर किसी प्रकार का विभेद नहीं करते, बल्कि हर एक मानव को एक (सम) दृष्टि से देखते और बरतते हैं|
असम्भव नहीं, मुश्किल जरूर : वर्तमान में भारतीय समाज में जितने भी तथाकथित संत, महात्मा, गुरु या आध्यात्म या धर्म से जुड़े लोग हैं, वे सभी अपने आपको आध्यात्मिक गुरु के रूप में दिखलाने का प्रयास करते हैं| जिनके आभामण्डल या मोहपाश में लाखों-करोड़ों अबोध लोग भ्रमित हो रहे हैं| यह अलग बात है कि कोई विरला ही इस योग्य हो पाता है| अनेक ढोंगी लोगों की भीड़ में आम व्यक्ति के लिये सच्चे गुरुओं को तलाशकर ढूँढ पाना आसान नहीं है| इसी वजह से सच्चे अध्यात्मिक गुरुओं के अनुभवों का समाज को मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है| फिर भी ज्ञान तथा मार्गदर्शन की सच्ची अपेक्षा करने वालों के लिये ढोंगियों की भीड़ में सच्चे गुरुओं को ढूँढना और उनका आशीष पाना असम्भव नहीं, लेकिन मुश्किल जरूर है!
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